Monday, September 19, 2011

मेरी मात्रभूमि बुला रही है... कुश पराशर 19-Sep-2011 1:30PM

मेरी मात्रभूमि बुला रही है... कुश पराशर 19-Sep-2011 1:30PM

कदम है देश से बाहर अपने,
कि मंजिल फिर पुकार रही है |
बेचैनी का आलम ना पूछो,
पग रखने को तरसा रही है ||
अभी कुछ दिन है और यहाँ के,
मन को विचलित किये जा रही है |
लम्हा - लम्हा, साल लगता है अब तो,
मेरी मात्रभूमि, मुझे बुला रही है ||

एक उमंग है, दिल में अपने,
एक बार दर्श हो अपनी  मिट्टी के |
पलभर ना ठहरता  है ये मन,
आशा के उत्साह में खोके,
तडपा रहा है, कुछ दिनों का पतझड़,
धीरज धरे हु, आये बहार के झोके |
अरमान है अब तो, सकूँ मिलेगा,
अपनी धरती माँ की, गोद्द में सोके ||

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