Wednesday, January 9, 2013

लहू से सज रही धरती, मगर परवाह नही जानी । --- कुश पाराशर 9-जनवरी-2013

लहू से सज रही धरती, मगर परवाह नही जानी ।        
सनी राजनीति के खेलो से, ये सरकार की मनमानी ।।
कभी बरसे कही लाठी, या बरसे कभी पानी ।
छात्र हो या हो महिला, या हो सन्यासी कोई ज्ञानी ।
सनी राजनीति के खेलो से, ये सरकार की मनमानी ।।
कही लहू लुहान है बैठे, कही आखों में है पानी ।
कोई माँग रहा न्याय, दे कर के क़ुरबानी ।
सनी राजनीति के खेलो से, ये सरकार की मनमानी ।।
वतन के नौजवानों ने, अपनी दी है बलिदानी ।
बखान रहे राज्य के नेता, राजनीति की कहानी ।
लहू से सज रही धरती, मगर परवाह नही जानी ।
सनी राजनीति के खेलो से, ये सरकार की मनमानी ।। --- कुश पाराशर  9-जनवरी-2013

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